Popular Posts

Wednesday 24 October 2012

कैसे लिखू.....


कैसे लिखू गीत मैं श्रृंगार के ,
तुम ही बताओं जरा ,
जब जल रहा हो देश ,
भूख और बेबसी के अंगार में ,
क्रंदन हो , रुदन हो , आर्तनाद हो ,
बाला के पायल की झंकार में ,
अमानवीयता का बोलबाला हो ,
मानवता आंसू बहा रही हो कहीं भंगार में ,
कैसे लिखूं मैं गीत श्रृंगार के ,
तुम ही बताओं ज़रा ,
धर्म , जाती के नाम पर विभाजन का विष ,
वोट के लिए खून बहाना ,
बहाना बना देश सेवा का ,
गीत लिखूंगा मैं , पर ठहरो अभी ,
श्रृंगार का नहीं यह समय ,
अभिसार का नहीं यह समय ,
समय है शब्द क्रान्ति का ,
शब्दों ने बदला है इतिहास ,
एक निवेदन छिपा है ,
मेरे इस इनकार में ,
कैसे लिखूं गीत मै श्रृंगार के
copyright@विनोद भगत

तुम कौन हो


अभिलाष लिए प्रीत की ,नयन निहार रहे पथ

अभिसार को आतुर ,प्रिय से मिलने को उन्मत्त

शब्द भी मादक मादक ,प्रेम की पराकाष्ठाएं

प्रेम ग्रन्थ की नायिका लज्जा के आभूषण सजाये

ह्रदय में फूटे प्रेम के अंकुर ,आमंत्रण के स्वर भी मौन है ,

रूप के अनंत सागर में उतराती हिलोरे लेती यह कौन है

चंचल कामिनी सी किस कवि का प्रेम गीत हो

या तुम कान्हा की बांसुरी का मधुर संगीत हो

विनोद भगत

सबसे बड़ी आपदा


लाशें गिनकर मुआवजा हम देंगे ,
आपदा की क्यों चिंता करते हो ,
हम हैं तो सही , जिन्दे को भूखा रख देंगे ,
गिनते जाओ लाशें दर लाशें ,
हमारा खजाना भरा है ,
यहाँ जिन्दा रहने पर कुछ नहीं मिलेगा ,
हम आखिर सरकार है , फर्ज अपना ,
पूरा निभायेंगे , आपदा प्रबंधन नहीं कर पाए तो क्या ,
तुम्हारे मरने पर शोक जताएंगे ,
आपदा राहत के मद का भी उपयोग करना है ,
नहीं तो , वह पैसे भी लेप्स हो जायेंगे ,
दो आंसू दिखावे के तो बहायेंगे ,
आखिर जनता के प्रति भी तो फर्ज निभायेंगे ,
आपदा तो दैवीय है , हम इन्सान क्या कर पायेंगे ,
मत घबराओ , मत शोर मचाओ ,
तुम ही ने तो हम जैसी आपदा को पैदा किया ,
हम सबसे बड़ी आपदा हैं ,
हमसे नहीं घबराए , तो अब किससे डरते हो ,
लाशें गिनकर मुआवजा हम देंगे ,
आपदा की क्यों चिंता करते हो ,

कापीराईट @विनोद भगत

पेट की आग


पेट में उनके आग होती है ,
जिनके चूल्हे बुझे होते हैं ,
बुझे चूल्हे की आग पेट से ,
जब बाहर निकलती है ,
तब विकराल हो जाती है ,
चूल्हे की आग से ज्यादा ,
पेट की आग तेजी से भड़कती है ,
इस पेट की आग को और मत भड़काओ ,
पेट की भड़की आग सब कुछ भस्म कर देगी ,
पेट सबके पास होता है ,
पेट में चूल्हा जब जलेगा ,
हर घर से उठेगा धुंए का गुबार ,
उस गुबार में कुछ नजर नहीं आयेगा ,
चारो और गुबार ही गुबार ,
धुएं के इस गुबार में ,
सभ्यता का खेल ख़त्म हो जाएगा ,
तब संघर्ष, भीषण संघर्ष होगा ,
सभ्यताएं और मानवताएं तब सिसकेंगी ,
पेट में आग मत भड़काओ ,
चूल्हों की आग जलाओ ,
चूल्हों की आग जलाओ ,
चूल्हों को मत बुझने दो ,
चूल्हों को मत बुझने दो ,

कापीराईट @विनोद भगत

हे , कृष्ण , तुम फिर आ जाओ


हे , कृष्ण , तुम फिर आ जाओ ,
पर अबकी बार कई है द्र
ौपदियां ,
साड़ी बहुत सी लेकर आना ,
और हाँ , लाखों है अब कंस यहाँ ,
पुतनाओं की तो भरमार है ,
अफ़सोस अर्जुन युधिस्ठिर सरीखे मित्र सखा ,
अब शायद ना मिल पायें ,
मिल भी जाएँ तो फटेहाल ही मिलेंगे ,
मै तुम्हें बुला तो रहा हूँ ,
और मुझे यह भी पता है ,
तुम भी अब दुर्योधन के साथी साबित कर दिए जाओगे ,
हाँ, अब यही होता है यहाँ ,
तुम्हें भागना पढ़ सकता है ,
तुम्हारा गीता ज्ञान पढ़ते तो हैं ,
पर अनुसरण दुर्योधन और कंस का करते हैं ,
सोच रहा हूँ ,
तुम्हें आने से रोक दूं ,
पर नहीं ,
तुम एक बार आ जाओ ,
आकर देख जाओ ,
आओगे ना तुम ,
हे क्रष्ण तुम फिर आ जाओ

copyright@ विनोद भगत

बदल रहा है ज़माना

बदल रहा है ज़माना , यह हमने माना ,
रिश्तों की बदली बदली परिभाषा,
बुन रहे अब नफ़रत का ताना बाना ,
तोड़ दिए हैं अब प्रेम के सभी साज़ ,
कैसे गायें अब मधुरता का तराना ,
बदल रहा है ज़माना , यह हमने माना ,
अपने ही दे रहे चोट दर चोट ,
किसे कहें अपना , कौन है बेगाना ,
रस्मो रिवाज़ भूल कर सभी ग़ुम हो गए ,
नयी हो गयी राहें भी, यह हमने जाना ,
बदल रहा है ज़माना , यह हमने माना ,
कोई किसी के लिए नहीं रोता ,
अब कोई किसी का नहीं बनता ,
आसान है हाथ छोड़कर बीच राह में ,
और कितना मुश्किल है साथ निभाना
बदल रहा है ज़माना , यह हमने माना ,

copyright@विनोद भगत
"

" आरक्षण आरक्षण

आओ, मैं तुम्हें खाउंगा ,
मैं आरक्षण हूँ ,
रक्षण नहीं, भक्षण करता हूँ ,

सपनो का , अरमानों का ,
देखो मेरा दम ,
योग्य जो है उसे अयोग्य बना देता हूँ ,
अयोग्य को प्रश्रय देता हूँ ,
तुम असहाय हो ,
एक पल में बता देता हूँ ,
मुझे सरंक्षण है ,
वोट के सौदागरों का ,
मै जानता हूँ ,
तुम नहीं कर सकते कुछ भी ,
मैं अट्टहास कर रहा हूँ ,
मुझे सींच रहे हैं तुम्हारे नीति नियंता ,
दरअसल सवर्ण होना अभिशाप बन गया है ,
तुम्हारे लिए ,
तुम सवर्ण हो ,
इसलिए शर्म आनी चाहिए तुम्हें ,
सवर्ण कहीं के ,
गाली बन गया है ,
अब सवर्ण शब्द ,
हाँ, तुम सवर्ण हो , सवर्ण हो ........
 
कापीराईट @विनोद भगत
"
.