अभिलाष लिए प्रीत की ,नयन निहार रहे पथ
अभिसार को आतुर ,प्रिय से मिलने को उन्मत्त
शब्द भी मादक मादक ,प्रेम की पराकाष्ठाएं
प्रेम ग्रन्थ की नायिका लज्जा के आभूषण सजाये
ह्रदय में फूटे प्रेम के अंकुर ,आमंत्रण के स्वर भी मौन है ,
रूप के अनंत सागर में उतराती हिलोरे लेती यह कौन है
चंचल कामिनी सी किस कवि का प्रेम गीत हो
या तुम कान्हा की बांसुरी का मधुर संगीत हो
विनोद भगत
—अभिसार को आतुर ,प्रिय से मिलने को उन्मत्त
शब्द भी मादक मादक ,प्रेम की पराकाष्ठाएं
प्रेम ग्रन्थ की नायिका लज्जा के आभूषण सजाये
ह्रदय में फूटे प्रेम के अंकुर ,आमंत्रण के स्वर भी मौन है ,
रूप के अनंत सागर में उतराती हिलोरे लेती यह कौन है
चंचल कामिनी सी किस कवि का प्रेम गीत हो
या तुम कान्हा की बांसुरी का मधुर संगीत हो
विनोद भगत
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