पुरातन
परम्पराओं के खंडहरों में ,
खोजने
का कर रहे प्रयत्न ,
अपने
गौरवशाली विरासतों के भग्नावशेष ,
अट्टहास
करते हमारी बेबसी पर ,
क्यों
संजो नहीं पाए हम अपना स्वर्णिम अतीत ,
क्यों
अपने ही हाथों से स्याह रंग उड़ेल दिए ,
अपनी
ही आने वाली पीढ़ी को क्यों धकेल रहे ,
अंधेरों
में ,
जीवन
को सम नहीं, विषमताओं का पर्याय बना दिया ,
यह
क्या कर डाला , हाय अपने स्वर्णिम अतीत पर हम तो इतराते हैं ,
भविष्य
भी क्या हम पर इठलाएगा,
गौरव
की कौन सी गाथा हमने लिखी ,
जिसे
पढ़ कर आने वाली नसले ,
हमारी
स्म्रतियों को संजों पाएंगी ,
स्याह
नहीं ,उजला इतिहास लिखें ,
नहीं
तो बरसों तक हमें कोसेंगी नस्लें .
विनोद
भगत
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