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Wednesday 26 December 2012

देह की गंध

देह की गंध को सूंघते है कुछ कुत्ते ,
देह ललचा रही है कुत्तों को ,
यह दरअसल कुत्ते नहीं थे ,
देह ने उन्हें बना दिया कुत्ता ,
कुत्तों की भीड़ बढती जा रही हैं ,
इस भीड़ में ऐसे भी हैं कुत्ते ,
जो सभ्य समाज के मुखौटे भी हैं ,
पर देह ने उन्हें कुत्तों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है ,
चेहरे छुपाने की कोशिश नाकाम हो रही है ,
वह पहचान लिए गए हैं ,
अब उनका शुमार भी कुत्तों में होने लगा है ,
अभी कुत्तों की संख्या और बढेगी ,
देह की गंध फैलती जा रही है ,
देह भी उघडती जा रही है ,
उघडती देह को रोकना होगा ,
कुत्ते बढ़ते जा रहे हैं ,
कहीं आदमी ढूढने ना पड़े कुत्तों के बीच से ,
देह को संभालो , कुत्ते कम होंगे

विनोद भगत

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