टूटती
उमीदों के रिसते,
जख्मों
पर ,
खोखले
वादों का मरहम लगाकर ,
मानवीय
संवेदनाओं के साथ खेलना ,
कब
तक चलेगा ,
निराश
हताश सी मानवीयता ,
अनैतिकता
की बुलंद होती ,
इमारतों
पर ,
अट्टहास
करते ,
नैतिकता
के शत्रु ,
रौदेंगे
कब तक ,
चीत्कार
करती मानवता ,
किसी
अवतार की ,
कब
तक करेगी प्रतीक्षा ,
आहों
से उपजी पीडाओं का ,
क्रंदन
कब तक ,
कौन
बनेगा अवलंबन ,
मानवीयता
का ,
धर्म
के नाम पर अधर्म
की
गाथा से काले होते ,
पन्ने
इतिहास के ,
कौन
धोएगा ,
इन
यक्ष प्रश्नों को ,
कब
तक रहना होगा ,
अनुत्तरित
-
विनोद भगत
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