आओ
चले बचपन की तलाश में ,
सड़क
किनारे मिलेगा ,
गंदा
सा , छूने को भी जिसे ,
मन
ना करेगा ,
अपने
बचपन की यादें ,
कितनी
सुनहरी थी ,
आह
क्या ऐसा बचपन ,
फिर
जी पाएंगे ,
असंभव
को संभव नहीं कर सकते ,
परन्तु
सड़क किनारे खड़े ,
किसी
रोते बच्चे को लगा गले ,
क्या
अपने बचपन के दिन लौटा पाएंगे
विनोद भगत
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