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Friday 17 February 2012

स्वप्नों की मंडी


मै स्वप्न खरीदने निकला ,
एक दिन , स्वप्नों के बाज़ार में ,
बड़ी भीड़ थी ,
ठसाठस भरे थे खरीदार ,
रंगीले स्वप्न , रसीले स्वप्न ,
स्वप्नों की मंडी में स्वप्न ही स्वप्न ,
सब नींद में थे ,
जागना भी नहीं चाहते ,
स्वप्न साकार करने की हिम्मत नहीं थी ना ,
दरअसल स्वप्न साकार करने के बजाय ,
स्वप्न खरीदना आसान लगता है ,
समय है किसके पास ,
सब व्यस्त है स्वप्न खरीदने में ,
स्वप्न खरीदने में जितना समय लगता है ,
उससे कम समय साकार होने में ,
करके तो देखो ,
स्वप्न की मंडी मे दिग्भ्रमित हो जाओगे ,
स्वप्नों की दुनिया से निकल कर यथार्थ मे ,
जीकर देखो
विनोद भगत

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