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Sunday 13 October 2013

हिन्दू इस देश के लिए खतरा

हिन्दू इस देश के लिए खतरा बन गए ,
वोट के लिए बलि का बकरा बन गए ,
मिल जुल के रहने की आदत अब छूटी,
दरअसल राजनीति का ककहरा पढ़ गए
मज़हब में सभी के है प्यार के अक्षर बहुत ,
जाने क्यों शब्द खून का कतरा बन गए ,
अपने स्वार्थ की बातो पर खूब चिल्लाए ,
और मतलब की बात पर बहरा बन गए
                                     विनोद भगत .............


Monday 19 August 2013

अंधेरों से .......

अंधेरों से अब मुझे प्यार होने लगा है ,
इनमें उजालों का सुखद इन्तजार तो है ,
सुख के दिन अब रोज़ ही डराते हैं मुझे ,
दुःख की घड़ियाँ लगती करीब जो हैं ,
मिलन अब उतना नहीं भाता है मुझे ,
विरह की बेला दिखती सामने को है ,
कैसे कह दूं प्यार तुमसे है मुझे ,
मेरी खता का इन्तजार जमाने को है

विनोद भगत

Wednesday 7 August 2013

आओ सृजन करें...............

आओ सृजन करें फिर से इस धरा पर मनोहर धाम का ,
सार्थक करें जन्म लेने का लक्ष्य जीवन है इसी काम का ,
उन्मुक्त गगन से सीख लें उच्च विचारों की उड़ान का ,
आओ लौट आयें अब भूला हुआ बनकर किसी शाम का ,
मर्यादा का करना है प्रतिस्थापन फिर से इस जगत में ,
सीख तो रावण से भी लें पर आदर्श अपनाएँ राम का ,
झूठ के महल खड़े बहुत कर लिए दुःख ही दुःख पाया
सतपथ का कठिन,पर अंत होगा सुखद परिणाम का ,
शताब्दियों के आदर्श एक पल में हो जाया करते हैं ख़ाक ,
बहुत कुछ अब करना होगा समय नहीं यह विश्राम का
आओ सृजन करें फिर से इस ध्ररा पर मनोहर धाम का ,
सार्थक करें जन्म लेने का लक्ष्य जीवन है इसी काम का ,
विनोद भगत

Sunday 21 July 2013

हिमालय की पुकार

सुनो रे , सुनो रे हिमालय की पुकार सुनो ,

क्या कहती बहती नदिया की धार सुनो ,

प्रगति के नाम पर कब तक होगी नादानी ,

रोकना है विनाश , और प्रलय घमासान ,

प्रकृति की रक्षा करने वालो के विचार चुनो ,

सुनो रे , सुनो रे हिमालय की पुकार सुनो ,

क्या कहती बहती नदिया की धार सुनो ,

जंगल काटते रहे और पानी को रोकते रहे ,

कितना वैभव और सुख देती वसुंधरा हमको ,

जागो रे जागो कृतघ्नों सा मत व्यवहार करो ,

सुनो रे , सुनो रे हिमालय की पुकार सुनो ,

क्या कहती बहती नदिया की धार सुनो

विनोद भगत

भक्ति का मार्ग

तुम मेरे पास श्रद्धा से आते ,
मैं श्रद्धा और भक्ति का भूखा हूँ ,
पर तुम तो अपना वैभव दिखाने आने लगे ,
तुम ही तो कहते हो , मैं सबको देता हूँ ,
मैं सर्वशक्तिमान हूँ , मुझमें समूचा जग समाया है ,
पर तुम तो मुझे ही दिखाने लगे अपनी तुच्छ शक्ति ,
धन धान्य मुझसे पाकर मुझे ही देने लगे ,
भूल गए मैंने तुम्हें इस योग्य बनाया ,
हाँ , मैंने बनाया इसलिए कोई दीन ना रहे ,
एक भी दीन जब तक है ,
मैं कैसे प्रसन्न रह सकता हूँ ,
बुद्धिमान कैसे कहूँ तुम्हें ,
तुम समझ नहीं पाए मुझे ,
नहीं जान पाए मेरा मंतव्य ,
मुझे प्रसन्न करने की झूठी कोशिश करते रहे ,
मैं संहारक भी हूँ ,
सृष्टि का सृजन भी मैंने ही किया है ,
पर , तुम समझ बैठे स्वयं को निर्माता ,
सच में तुम कितने मूर्ख बुद्धिमान हो ,
मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा धन ,
मेरी बनाई सृष्टि के निर्माण से प्रेम करो ,
सच कहूँ यही है मेरी भक्ति का मार्ग ,
विनोद भगत

Saturday 13 July 2013

आग सीने मे--------

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आग सीने में कब तक दबाएँ रहें हम,
आओ जला दें अब अन्याय के महल ,
खामोशी को विरोध की मशाल बनाएं ,
खुद ही मसीहा बन करनी होगी पहल,
आग सीने में कब तक दबाएँ रहें हम,
उनके ज़ुल्मों की अब हो गयी इन्तहां ,
सुनो शास्त्र नहीं अब शस्त्र उठाने होंगे ,
ईमान की आंधी से सीने जाएँ दहल
आग सीने में कब तक दबाएँ रहें हम,
खून के आंसू रुलाने वालोँ ख़बरदार ,,
हमारी शांति लाएगी एक दिन तूफ़ान ,
हर ज़ुल्म का हिसाब लेंगे पल पल ,
आग सीने में कब तक दबाएँ रहें हम,

विनोद भगत

अपने आप उजड़ रहे हैं

रिश्तो की ठोस बर्फ अब कहाँ ,
संबंधों के ग्लेशियर पिघल रहे हैं ,
लिहाजों की नहीं कोई जगह अब ,
वर्जनाओं के पर्वत उधड रहे हैं ,
देवी मानते हैं कितना नारी को अब ,
अखबारों में रोज़ ही पढ़ रहे हैं ,
आदर्शों की रोज़ होली जलाते अब ,
वीभत्स कहानियां ही गढ़ रहे हैं ,
भावनाओं की लगातार होती ह्त्या ,
प्रगति के कैसे सोपान चढ़ रहे हैं,
दोष हमारा ही है अपराधी भी हम ,
अपना कसूर किसके माथे मढ़ रहे हैं ,
किसी ने नहीं किया यह कब सोचेंगे ,
हां खुद ही अपने आप उजड़ रहे हैं ,

विनोद भगत ,