विकास
हो रहा है ,
आज
भी प्लेटफार्म पर कड़कती ठण्ड में ,
ठिठुरन
भरी रात में फटे कम्बल में कोई सो रहा है ,
विकास
हो रहा है ,
मैंने
देखा एक रोटी के टुकड़े के लिए माँ की गोद में बच्चा ,
जार-जार
रो रहा है ,
विकास
हो रहा है ,
आज
भी पेट की आग बुझाने को ,
पूरा
शरीर बिक रहा है ,
विकास
हो रहा है ,
पञ्च
सितारा कक्षों में बैठकों में सड़क पर रहने वालो के भाग्य का ,
कोई
फैसला हो रहा है ,
विकास
हो रहा है ,
हाँ
विकास हो रहा है ,
निरंतर
इस बात का दावा हो रहा है ,
विकास
हो गया तो उनके पास फिर काम ही क्या होगा ,
इसलिए
विकास हो रहा है
विनोद
भगत