इन
दिनों बहस
जारी है ,
हम
फिर गुलाम ,
होने
जा रहे हैं ,
बहस
का विषय ,
क्या
यह नहीं हो ,
सकता
कि,
हम
अब कभी ,
गुलाम
नहीं होंगे ,
पर
अफ़सोस हम ,
असहाय
हैं शायद ,
दो
सौ वर्षों ,
कीगुलामी हमारी ,
मानसिकता
पर ,
आज
भी हावी है ,
इसीलिए
हम नहीं ,
सोच
पाते,
गुलामी के अलावा कुछ ,
संकीर्ण
सोच के ,
दायरे
में सिमटकर ,
हम
अपने ही भाग्य के ,
विनाशक
बन ,
बैठे
हैं ,
गुलामी
हमारा प्रारब्ध नहीं ,
गुलामी
हमारा स्वभाव नहीं ,
गुलामी
हमारी मानसिक
सोच है सिर्फ ,
सोच
की दिशा भर ,
बदल
दें हम ,
प्रश्न
यह नहीं है ,
कि
हम गुलाम होने जा ,
रहे
हैं ,
बल्कि
यह है कि ,
हम
गुलाम ,
क्यों
हो जाएँ ,
सुनो,
गुलामी से बचने को ,
अब
हम हम सर नहीं ,
कटायेंगे ,
अब
तैयार रहो सर ,
काटने
को ,
बहस
जारी रखो ,
पर
अब , गुलाम होने कि प्रतीक्षा ,
हम
नहीं करेंगे .
विनोद भगत