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Friday 17 February 2012

मजबूर


मजबूर है प्रधानमंत्री ,
लाचार है आम आदमी ,
भ्रष्टाचार कर रहा अट्टहास ,
भारत की यह कैसी हुई तकदीर ,
अन्ना, रामदेव को भी साना ,
भ्रष्टाचार के दलदल में ,
अब कौन करेगा आम आदमी का दुःख दूर ,
जो भी आएगा आगे ,उसे भी देख िलया जायेगा ,
हम तो कीचड़ है , पत्थर मारने की कोइश्श कर के देख लो ,
हमारे भ्रष्टाचार की बात भूल जाओ ,
अपने दामन के छीटे साफ़ करने की सोचो ,
करें क्या मेरे प्यारे देशवासियों हम तो मजबूर है ,
हम तो मजबूर हैं ,
                  विनोद भगत

गुलामी


इन दिनों बहस
 जारी है ,
हम फिर गुलाम ,
होने जा रहे हैं ,
बहस का विषय ,
क्या यह नहीं हो ,
सकता कि,
हम अब कभी ,
गुलाम नहीं होंगे ,
पर अफ़सोस हम ,
असहाय हैं शायद ,
दो सौ वर्षों ,
कीगुलामी  हमारी ,
मानसिकता पर ,
आज भी हावी है ,
इसीलिए हम नहीं ,
सोच पाते,
 गुलामी के अलावा कुछ ,
संकीर्ण सोच के ,
दायरे में सिमटकर ,
हम अपने ही भाग्य के ,
विनाशक बन ,
बैठे हैं ,
गुलामी हमारा प्रारब्ध नहीं ,
गुलामी हमारा स्वभाव नहीं ,
गुलामी हमारी मानसिक
  सोच है सिर्फ   ,
सोच की दिशा भर ,
बदल दें हम ,
प्रश्न यह नहीं है ,
कि हम गुलाम होने जा ,
रहे हैं ,
बल्कि यह है कि ,
हम गुलाम ,
क्यों हो जाएँ ,
 सुनो,
 गुलामी से बचने को ,
अब हम हम सर नहीं ,
कटायेंगे ,
अब तैयार रहो सर ,
काटने को ,
बहस जारी रखो ,
पर अब , गुलाम होने कि प्रतीक्षा ,
हम नहीं करेंगे .

             विनोद भगत

लोकपाल


कूड़ा बीनने वाले से कहा ,
सुनो लोकपाल बिल पास होने वाला है ,
मैली कमीज में कापते हुए वह बोला ,
अब तो बाबूजी मुझे कूड़ा नहीं बिनना पडेगा ,
एक कृशकाय शरीर रिक्शा खीच रहा था ,
उसे भी बताया लोकपाल बिल पास होने वाला है ,
बीडी का कश लगाकर बोला ,
तब तो , अब मुझे मजदूरी ज्यादा मिलेगी ,
कड़कती ठण्ड में , कोहरे भरी रात में ,
पुराने कम्बल में लिपटा फूटपाथ पर सोये ,
एक बेघर को बताया , लोकपाल बिल पास हों वाला है ,
वह बोला अब तो मुझे घर मिल जाएगा ,
में सोच रहा था , लोकपाल इतनी बहस हो रही है ,
अन्ना अनशन कर रहे है , नेता आपस में उलझ रहे है ,
लोकपाल बी कैसा भी पास हो , कूड़ा बीनने वाला कूड़ा ही बीनेगा,
रिक्शा वाला रिक्शा ही चलाएगा ,
घर की आस में जीने वाला बेघर ही मर जायेगा ,
हाँ, लोकपाल बिल पास हो जायेगा  
                           विनोद भगत

सम्मानित व्यक्ति


एक दिन ,
मुझे लगने लगा ,
 अरे मैं सम्मान के योग्य हो गया हूँ ,
अब हर किसी को मेरा ,
अभिनन्दन करना चाहिए ,
सब मेरा सम्मान करें ,
पर यह क्या ,
जिस दिन से मैंने ,
यह सोचा ,
ठीक उसी दिन से ,
मुझे ऐसा भी लगा ,
लोग मेरा ,
अपमान कर रहे हैं ,
क्यों ,
यह क्या हुआ , मुझ जैसे ,
सम्मानित का अपमान क्यों ,
मैं उसी दिन से खिन्न रहने लगा ,
हैरान परेशान होने लगा ,
अपने अपमान का कारण ढूढने ,
में लग गया ,
कि अचानक एक दिन मुझे कारण भी पता चल गया ,
मेरे ही अंतर्मन से एक आवाज़ आयी ,
तुम खुद को सम्मानित समझ रहे हो ,
दूसरों को क्या समझते हो ,
अपने सम्मान कि याद तुम्हें है ,
जरा सोचो एक पल के लिए ,
सम्मान से देखो दूसरों को भी ,
सम्मान दो दूसरों को भी ,
मैंने मन कि बात सुनी और मानी ,
अब मैं सुकून से हूँ ,
दूसरों को सम्मान देता हूँ ,
तब से मुझे भी सम्मान मिलने लगा ,
 सही मायनों में अब ,
सम्मानित व्यक्ति हूँ ,
 मैं सबका सम्मान करता हूँ ,
और खुद भी सम्मानित हो रहा हूँ ,
दोस्तों अब मैं वास्तव में ,
सम्मानित व्यक्ति हूँ( विनोद भगत )