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Friday 17 February 2012

सम्मानित व्यक्ति


एक दिन ,
मुझे लगने लगा ,
 अरे मैं सम्मान के योग्य हो गया हूँ ,
अब हर किसी को मेरा ,
अभिनन्दन करना चाहिए ,
सब मेरा सम्मान करें ,
पर यह क्या ,
जिस दिन से मैंने ,
यह सोचा ,
ठीक उसी दिन से ,
मुझे ऐसा भी लगा ,
लोग मेरा ,
अपमान कर रहे हैं ,
क्यों ,
यह क्या हुआ , मुझ जैसे ,
सम्मानित का अपमान क्यों ,
मैं उसी दिन से खिन्न रहने लगा ,
हैरान परेशान होने लगा ,
अपने अपमान का कारण ढूढने ,
में लग गया ,
कि अचानक एक दिन मुझे कारण भी पता चल गया ,
मेरे ही अंतर्मन से एक आवाज़ आयी ,
तुम खुद को सम्मानित समझ रहे हो ,
दूसरों को क्या समझते हो ,
अपने सम्मान कि याद तुम्हें है ,
जरा सोचो एक पल के लिए ,
सम्मान से देखो दूसरों को भी ,
सम्मान दो दूसरों को भी ,
मैंने मन कि बात सुनी और मानी ,
अब मैं सुकून से हूँ ,
दूसरों को सम्मान देता हूँ ,
तब से मुझे भी सम्मान मिलने लगा ,
 सही मायनों में अब ,
सम्मानित व्यक्ति हूँ ,
 मैं सबका सम्मान करता हूँ ,
और खुद भी सम्मानित हो रहा हूँ ,
दोस्तों अब मैं वास्तव में ,
सम्मानित व्यक्ति हूँ( विनोद भगत )

विरासतों के खँडहर


करें पुनर्निर्माण आओ ,
 विरासतों के खँडहर का ,
 भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,
हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,
नए सिरे से सवांरें,
नव ऊर्जा का संचार भरें ,
प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,
प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,
 अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,
घातक स्वरुप धारण करें ,
उससे पूर्व जागृत हों ,
जागृत करें समाज को ,
 स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,
मानवीयता के प्रकाश से ,
करें आलोकित धरा को ,
राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,
 मिलाकर करें पुनर्निर्माण
आओ विरासतों के खँडहर का

           विनोद भगत

शीतल चादनी


जीवन के झंझावातों में ,
पीड़ा भरी रातों में ,
हृदय की गहराईयों में ,
तुम ही तुम थे ,
हाँ यह तुम ही तो थे ,
जिसके निश्छल प्रेम ने ,
दिया मुझे जीने का संबल ,
प्रिये, तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श ने ,
मेरे दर्द को भी स्वादमय बना दिया ,
में कैसे कहूँ की तुम मेरे तम भरे जीवन में ,
शीतल चादनी की मानिंद आये ,
                        विनोद भगत

टुकड़े


टुकड़े कितने जरुरी है ,
रोटी का हो या जमीन का ,
और कडकती ठण्ड में ,
एक अदद धूप का टुकड़ा ,
जीवन की निशानी होता है ,
पर टुकडो में बटना किसी को स्वीकार नहीं ,
फिर भी हम रोटी और जमीन के टुकड़े के लिए ,
टुकड़ों में बंट रहे है ,
एक टुकडा रोटी देने को हम तैयार नहीं ,
पर ह्रदय के टुकड़े करने में हमे महारथ हासिल है ,
टुकडा टुकडा होते हम ,
नहीं समझ पा रहे अभी भी हम ,
और कितने टुकड़ों में बटेंगे हम ,
टुकडा होने का यह खेल जारी रहेगा कब तक ,
कब सोचेंगे हम ,
नहीं जानते ,
 अभी तो टुकडा टुकडा होने में व्यस्त है
                           विनोद भगत