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Monday 10 June 2013

यह कैसी उन्नति


कच्चे घरों में रिश्ते ,
होते थे पक्के ,
अफ़सोस कि अब ,
घर तो पक्के हैं ,
पर रिश्ते कच्चे हो गए हैं ,
कच्ची सडकों पर उड़ती धूल ,
में कितना अपनापन था ,
अब डामर की काली सडकों ,
से नहीं हो पता संवाद भी ,
खेतों में जब उगा करती थी केवल फसल ,
अब तो फ़्लैट उगने लगे खेतों में भी ,
गैस के चूल्हे का बेस्वाद भोजन ,
बूढी दादी के बनाए मिटटी के चूल्हे ,
में बनी रोटी का अलौकिक स्वाद अब कहाँ रहा ,
हफ़्तों बाद पहुचती चिट्ठियों में उमड़ता प्यार ,
एक सपना मात्र हैं ,
मोबाईल के एस एम एस में कहाँ होता है प्रेम का अंश ,
भाव तो हर चीज़ के बढ़ रहे है ,
पर "भाव" अब कहाँ रहे ,
सच में क्या हम उन्नति कर रहे हैं ,
पर कैसी उन्नति ,

विनोद भगत

Saturday 8 June 2013

उत्तर दो ,



उर में वेदना है गहरी ,
नयनों के अश्रु हुए शुष्क ,
अधरों से शब्द नहीं छूट रहे ,
कलरव खगों का हुआ मौन ,
प्रकृति की मनोरम छटा खोज रहा मै ,
अरे , यह कौन निर्मम हैं ,
जिसने रौद दिया कोमल मन को ,
यह कौन है जिसने बदले आदर्श ,
छद्म आदर्शों की
मृग मरीचिका के पीछे भागने की परम्परा ,
किस दुर्बुद्धि ने की शुरू ,
मौन नहीं साधो ,
उत्तर दो ,
मानवता क्यों कर रही क्रंदन ,
उत्तर दो ,

विनोद भगत

Thursday 6 June 2013

बस्तियों में

बस्तियों में क़ानून हो गया जंगल का,
जंगल की व्यवस्था अब बदलनी होगी,
फर्क कैसे हो बस्ती और जंगल के बीच,
एक बहस इस बात पर भी करनी होगी,
जानवर सा ही लगने लगा है आदमी,
सूरत जानवर की अब बदलनी होगी,
अफ़सोस क्यों अपने कर्मों का करें अब ,
गौरव की नहीं शर्म गाथाएँ लिखनी होगी
बस्तियों में क़ानून हो गया जंगल का,
जंगल की व्यवस्था अब बदलनी होगी,
विनोद भगत

Tuesday 4 June 2013

एक कहानी बड़ी पीड़ाभरी

एक कहानी बड़ी पीड़ाभरी है मेरे देश की ,
मगर आंसू नहीं आते किसी की आँखों में ,
संवेदनाएं तो मृत हो चुकी हैं मेरे देश की ,
रोज़ ही होती मानवता की नृशंस हत्या ,
आँखें तो बंद हैं क़ानून की मेरे देश की
सरेआम लुट जाती हैं अस्मतें यहाँ रोज़ ,
है इन्साफ की आस में बेटी मेरे देश की
है कौन सा नीच कर्म जिसमे नहीं लिप्त
भूल गए गौरवमयी थातियाँ मेरे देश की

विनोद भगत

Saturday 18 May 2013

अंतहीन तलाश

ठाकुर ,ब्राहमण ,दलित , यादव,

और भी ना जाने कौन ,
मेरे देश में सभी मिलते हैं ,
नहीं मिलता तो एक आदमी नहीं मिलता ,
मैं तलाश रहा हूँ एक आदमी ,
,गुजराती पंजाबी , मराठी , पहाड़ी .
यह सब भी मिलते हैं मेरे देश में ,
नहीं मिलता तो एक हिंदुस्तानी ,
मैं तलाश रहा हूँ एक हिंदुस्तानी ,
हिन्दू , मुस्लिम ईसाई और सिख भी ,
मेरे देश में मिलते हैं ,
मै ढूढ़ रहा हूँ एक इंसान ,
नेता ,अभिनेता , समाजसेवक भी ,
मेरे देश में आसानी से मिलते हैं ,
मैं ढूंढ़ रहा हूँ एक भला मानुष ,
मेरी तलाश जारी है अभी भी ,
शायद अंतहीन तलाश

विनोद भगत

समाजसेवक ,

नमस्कार , मै समाजसेवक ,
आपकी सेवा के लिए सदा तत्पर ,
कहिये , आपकी क्या समस्या है ,
अरे हाँ आराम से , मेरे चमचमाते मार्बल के फर्श से बचना ,
कहीं फिसल ना जाना ,
मेरे गले सोने की चेन देख रहे हो भाई ,
यह सब मेरी समाजसेवा का ही फल है ,
सच में समाजसेवा में बड़ा आनंद है ,
आप बताएं ,मै आपके लिए क्या कर सकता हूँ ,
वह बोला , समस्या मेरी आप शायद ही सुलझा पाओ ,
मै समाज सेवक , मुझको चुनौती दे रहे हो ,
तुम नहीं जानते बाहर खड़ी सफ़ेद रंग की महंगी गाडी ,
यह शानदार कोठी यह सब मैंने समाजसेवा से ही तो कमाया है ,
बड़े नेताओं और मंत्रियों तक मेरी पहुँच ,
सब समाजसेवा का ही तो प्रतिफल है ,
वह बोला , फिर भी तुम मेरी समस्या नहीं सुलझा सकते ,
आखिर कौन सी समस्या है , तुम्हारी ,
तुम जैसे समाजसेवक ही हमारी सबसे बड़ी समस्या है ,
नहीं , नासूर है , तुम अपने आप को समाजसेवक कहलाना बंद कर दो ,
समाज का कुछ भला होगा ,
बताओ ,सुलझा पाओगे क्या ,
कल तक तुम्हारी गिनती उठाईगीरों में होती थी ,
आज तुम समाज सेवक हो गए हो ,
दरअसल यही तो बड़ी समस्या है ,
दूर कर पाओगे ,
मै निरुत्तर था ,
वह कहे जा रहा था ,
समाजसेवक सुने जा रहा था ,

विनोद भगत

काला धन ,

भारत एक सांस्कृतिक देश है ,
नेताजी बोल रहे थे ,
पत्रकार बोले ,नेताजी काला धन ,
देश की सबसे बड़ी समस्या है ,
आप क्या कहेंगे इस बारे में ,
नेताजी आग बबूला हो गए ,
पत्रकारों पर आँखें तरेरी ,
गुस्से से बोले ,
आप इस पावन देश की संस्कृति को प्रदूषित कर रहे हैं ,
इस वैदिक और सांस्कृतिक देश में धन लक्ष्मी जी होती हैं ,
और आप लक्ष्मीजी को काला कह रहे हो ,
इसीलिए धन (लक्ष्मीजी ) हमारे पास है ,
आप धन कमाने को पाप कहते हो ,
कैसे अधर्मी हो ,
धर्म का पालन करो , धन की पूजा करो ,
धन के लिए कुछ भी करो ,
तभी लक्ष्मीजी प्रसन्न होंगी ,
आईंदा काला धन कभी मत कहना ,
धन तो धन है ,
हम तो धन की यानी लक्ष्मीजी की इज्ज़त करते हैं ,
तभी तो बेहतर ज़िन्दगी जीते हैं ,
विनोद भगत