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Wednesday 24 October 2012

" आरक्षण आरक्षण

आओ, मैं तुम्हें खाउंगा ,
मैं आरक्षण हूँ ,
रक्षण नहीं, भक्षण करता हूँ ,

सपनो का , अरमानों का ,
देखो मेरा दम ,
योग्य जो है उसे अयोग्य बना देता हूँ ,
अयोग्य को प्रश्रय देता हूँ ,
तुम असहाय हो ,
एक पल में बता देता हूँ ,
मुझे सरंक्षण है ,
वोट के सौदागरों का ,
मै जानता हूँ ,
तुम नहीं कर सकते कुछ भी ,
मैं अट्टहास कर रहा हूँ ,
मुझे सींच रहे हैं तुम्हारे नीति नियंता ,
दरअसल सवर्ण होना अभिशाप बन गया है ,
तुम्हारे लिए ,
तुम सवर्ण हो ,
इसलिए शर्म आनी चाहिए तुम्हें ,
सवर्ण कहीं के ,
गाली बन गया है ,
अब सवर्ण शब्द ,
हाँ, तुम सवर्ण हो , सवर्ण हो ........
 
कापीराईट @विनोद भगत
"
.

प्यार नफ़रत


इस भागती ज़िन्दगी में प्यार के लिए फुरसत नहीं मिलती,
ना जाने फिर भी लोग नफ़रत का वक़्त कैसे निकाल लेते हैं ,
नहीं मुक्कम्मल जिंदगी जीने का जिनके पास सलीका ,
वोह , कितनी आसानी से मौत का सामान निकाल लेते हैं ,
खुद को आईने मे देखकर खुद ही खुद पर इतराते रहते है
बिना देखे दूसरों में ना जाने कैसे नुख्स निकाल लेते हैं
वफ़ा करना जिनकी फितरत में नहीं कभी दोस्तों ,
यारों को अपने कैसे बेवफा कह दिल से निकाल लेते हैं ,

कापीराईट @विनोद भगत

पैसा नहीं आत्मीयता

सुनो भाई ,
कोई तो सुनो ,
मै भी पैसे वाला बनूंगा ,

और जब मै पैसे वाला ,
बहुत सारे पैसे वाला बन जाउंगा ,
तब भी, मुझे तुम ऐसे ही स्नेह दोगे ,
अरे , स्नेह के बदले पैसा दूंगा ,
तुम मेरी वाह वाह करना ,
उसके भी पैसे दूंगा ,
मै पैसे से सम्मान खरीदूंगा ,
मै पैसे के लिए कहीं तक भी गिर जाउंगा ,
पर तुम तो फिर भी मेरा सम्मान ही करोगे ,
आंखिर मै पैसे वाला हूँ ,
पैसे के बदले मुझे तुम अपनी आत्मीयता भी दोगे ,
मै जानता हूँ , अच्छी तरह जानता हूँ ,
मै तुम्हारी आत्मीयता नहीं खरीद पाउँगा ,
पैसा मुझे तुम्हारी आत्मीयता से दूर कर देगा ,
सोच रहा हूँ , मै ऐसे ही ठीक हूँ ,
मुझे पैसे से ज्यादा आपकी आत्मीयता प्रिय है ,
हाँ सोच लिया ,
मै पैसे वाला नहीं,
केवल तुम्हारा मित्र बने रहना चाहूँगा ,
तुम मेरे मित्र हो ,
इससे बड़ा धन और क्या होगा
विनोद भगत
"

दहलीजें,

दहलीजें,
अब नहीं होती घरो में ,
इसीलियें,
मर्यादाएं भी टूट रही हैं ,
दहलीज़ लांघने का,
एक मतलब होता था ,
अब दहलीज़ ही नहीं
तो मतलब भी ख़तम
दहलीजें जो संस्कृति का ,
वाहक थी ,
दहलीजों पर उकेरे ,
जाते आलेखन ,
घर की सांस्कृतिक ,
पहचान का परिचय होता था ,
दहलीज़ सीमा होती थी ,
अब सीमाओं से परे हो गए हैं हम ,
दहलीज़ को भुला दिया है ,,
बार लांघने के बजाय दहलीज़ को ,
हटा दिया ,
अब मर्यादाओं के टूटने का कोई डर नहीं

विनोद भगत
"

प्रतिभा तो घर में ही रहेगी ,


भई वाह ,
क्या खूब लिखते हो ,
आम आदमी की पीड़ा पर कलम चलाते हो ,
पहनावे से तो तुम ऐसे ही लगते हो ,
क्या शानदार रचना लिखते हो ,
मेरी प्रशंसा से क्यों सकुचाते हो ,
तुम्हें लिखना चाहिए , लगातार लिखो,
प्रतिभा छुपी नहीं रहनी चाहिए ,
उसे बाहर निकालो ,
अब उसने भी मुह खोला ,
देखिये बाबूजी ,
प्रतिभा तो घर में ही रहेगी ,
और आप पता नहीं क्या क्या अनाप शनाप बके जा रहे हैं ,
आप लोगो ने हमारी जेबें तक तो खाली करा ली ,
अब घरवाली को भी घर से निकालोगे ,
हाँ , लाओं, मेरे महीने के हिसाब का पर्चा तो दे दो ,
लाला गड़बड़ कर देगा ,
इस पर्चे को देख कर पता नहीं आप क्या बडबडा रहे हो ,
दाल , आटे का बढता भाव और सिलेंडर के दाम लिखे हैं इस पर ,
आप पता नहीं क्या समझ रहे हो ,
पप्पू की फीस और घर के राशन का हिसाब,
यह तो हम रोज़ ही लिखते पढते और समझने की कोशिश में हैं ,
पर अब तक नहीं समझे ,
आप समझे क्या ,

कापीराईट @ विनोद भगत

शब्द


शब्द अमृत हैं कभी , शब्द विष भी होते हैं
शब्द प्राण हैं तो शब्द मृत्यु भी होते हैं
शब्द सम्बन्ध, तो शब्द बिखराव भी होते हैं
शब्द अपने हैं , शब्द पराये भी होते हैं
शब्द ख़ास हैं , शब्द आम भी होते हैं
शब्द मित्र हैं , शब्द शत्रु भी होते हैं
शब्द धरती हैं , शब्द आकाश भी होते हैं
शब्द बनाव हैं , शब्द बिगाड़ भी होते हैं ,
शब्द सत्य हैं , शब्द झूठ भी होते हैं ,
शब्द शब्द हैं , शब्द नि :शब्द भी होते हैं
शब्द बचाव हैं , शब्द नाशवान भी होते हैं ,
शब्द दानव हैं , शब्द भगवान् भी होते हैं ,
शब्द प्राणवान हैं , शब्द मारक भी होते हैं ,
कापीराईट @विनोद भगत

असहाय लोग ,



सुलगते सवालों के बीच ,
धधकते समाज के साथ ,
जी रहे असहाय लोग ,
धुंआ धुंआ होते अरमानों ,
की लाश पर बेजार रोते ,
मरते हुए जी रहे असहाय लोग ,
नित जीने की आशा दिखाते ,
रोज़ पैदा हो रहे मसीहाओं के फुस्स होते ,
आंदोलनों के भंवर में फसे ,
ना जाने कैसे जी रहे असहाय लोग ,
अरबों के वारे न्यारे हो रहे यहाँ ,
बेदर्दों की हमदर्दी के दर्द से कराह रहे ,
बेहद पीड़ा है मन में
फिर भी जी रहे असहाय लोग ,
सुलगते सवालों के बीच ,
धधकते समाज के साथ ,
जी रहे असहाय लोग ,
विनोद भगत