अश्लथ ,अप्रतिहत अवधार्य कर्म असि आगे बढ़ते है जाना
कंटक पथ पद नग्न , पर अविराम तुझे चलते है जाना
बाधा पर्वत सी होती है ,साहस का मान रख चलता जा
लक्ष्य अर्जुन सा देखना, संधान करने से नहीं है घबराना
विराम विश्राम हैं कुटिल शत्रु, लक्ष्य संधान के पथ में ,
विचलित ना हो पथिक बाधाओं से ही लक्ष्य है पाना
विनोद भगत
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