उर में वेदना है गहरी ,
नयनों के अश्रु हुए शुष्क ,
अधरों से शब्द नहीं छूट रहे ,
कलरव खगों का हुआ मौन ,
प्रकृति की मनोरम छटा खोज रहा मै ,
अरे , यह कौन निर्मम हैं ,
जिसने रौद दिया कोमल मन को ,
यह कौन है जिसने बदले आदर्श ,
छद्म आदर्शों की
मृग मरीचिका के पीछे भागने की परम्परा ,
किस दुर्बुद्धि ने की शुरू ,
मौन नहीं साधो ,
उत्तर दो ,
मानवता क्यों कर रही क्रंदन ,
उत्तर दो ,
विनोद भगत
No comments:
Post a Comment