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बदल गए है संबंधों के अर्थ , अर्थ के लिए बन रहे है सम्बन्ध , व्यर्थ हो गए सभी सम्बन्ध , अर्थ है तो सम्बन्ध भी है , अर्थ का यह कैसा हु...
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मैं छूना चाहता हूँ , तुम्हें , कुछ इस तरह कि, छूने का अहसास , भी होने पायें तुम्हें , क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का , मंदिर...
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मैं नया नया इस शहर में आया था। पहली पोस्टिंग थी। बड़ी मुश्किल से एक कमरा मिला। उसमें भी कई प्रतिबंध नौ बजे बाद नहीं आओगे, लाइट फालतू नहीं जल...
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नमस्कार , मै समाजसेवक , आपकी सेवा के लिए सदा तत्पर , कहिये , आपकी क्या समस्या है , अरे हाँ आराम से , मेरे चमचमाते मार्बल के फर्श से बचन...
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मै स्वप्न खरीदने निकला , एक दिन , स्वप्नों के बाज़ार में , बड़ी भीड़ थी , ठसाठस भरे थे खरीदार , रंगीले स्वप्न , रसीले स्वप...
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आओ समाज को बदलें , आओ लोगो को बदलें , आओ सदाचार सिखाएं , आओ उपदेश दें , आओ सत्य का प्रचार करें , आओ दुनिया को नैतिकता का...
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ज़मीन नफ़रत की , और खाद मिलायी दंगों की , वोट की फसल पाने के लिए , हकीकत यही है सियासत में घुस आये नंगों की , सत्ता मिलते ही एकदम , ...
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पेट में उनके आग होती है , जिनके चूल्हे बुझे होते हैं , बुझे चूल्हे की आग पेट से , जब बाहर निकलती है , तब विकराल हो जाती है , चूल्हे...
Saturday 18 May 2013
समाजसेवक ,
नमस्कार , मै समाजसेवक ,
आपकी सेवा के लिए सदा तत्पर ,
कहिये , आपकी क्या समस्या है ,
अरे हाँ आराम से , मेरे चमचमाते मार्बल के फर्श से बचना ,
कहीं फिसल ना जाना ,
मेरे गले सोने की चेन देख रहे हो भाई ,
यह सब मेरी समाजसेवा का ही फल है ,
सच में समाजसेवा में बड़ा आनंद है ,
आप बताएं ,मै आपके लिए क्या कर सकता हूँ ,
वह बोला , समस्या मेरी आप शायद ही सुलझा पाओ ,
मै समाज सेवक , मुझको चुनौती दे रहे हो ,
तुम नहीं जानते बाहर खड़ी सफ़ेद रंग की महंगी गाडी ,
यह शानदार कोठी यह सब मैंने समाजसेवा से ही तो कमाया है ,
बड़े नेताओं और मंत्रियों तक मेरी पहुँच ,
सब समाजसेवा का ही तो प्रतिफल है ,
वह बोला , फिर भी तुम मेरी समस्या नहीं सुलझा सकते ,
आखिर कौन सी समस्या है , तुम्हारी ,
तुम जैसे समाजसेवक ही हमारी सबसे बड़ी समस्या है ,
नहीं , नासूर है , तुम अपने आप को समाजसेवक कहलाना बंद कर दो ,
समाज का कुछ भला होगा ,
बताओ ,सुलझा पाओगे क्या ,
कल तक तुम्हारी गिनती उठाईगीरों में होती थी ,
आज तुम समाज सेवक हो गए हो ,
दरअसल यही तो बड़ी समस्या है ,
दूर कर पाओगे ,
मै निरुत्तर था ,
वह कहे जा रहा था ,
समाजसेवक सुने जा रहा था ,
विनोद भगत
आपकी सेवा के लिए सदा तत्पर ,
कहिये , आपकी क्या समस्या है ,
अरे हाँ आराम से , मेरे चमचमाते मार्बल के फर्श से बचना ,
कहीं फिसल ना जाना ,
मेरे गले सोने की चेन देख रहे हो भाई ,
यह सब मेरी समाजसेवा का ही फल है ,
सच में समाजसेवा में बड़ा आनंद है ,
आप बताएं ,मै आपके लिए क्या कर सकता हूँ ,
वह बोला , समस्या मेरी आप शायद ही सुलझा पाओ ,
मै समाज सेवक , मुझको चुनौती दे रहे हो ,
तुम नहीं जानते बाहर खड़ी सफ़ेद रंग की महंगी गाडी ,
यह शानदार कोठी यह सब मैंने समाजसेवा से ही तो कमाया है ,
बड़े नेताओं और मंत्रियों तक मेरी पहुँच ,
सब समाजसेवा का ही तो प्रतिफल है ,
वह बोला , फिर भी तुम मेरी समस्या नहीं सुलझा सकते ,
आखिर कौन सी समस्या है , तुम्हारी ,
तुम जैसे समाजसेवक ही हमारी सबसे बड़ी समस्या है ,
नहीं , नासूर है , तुम अपने आप को समाजसेवक कहलाना बंद कर दो ,
समाज का कुछ भला होगा ,
बताओ ,सुलझा पाओगे क्या ,
कल तक तुम्हारी गिनती उठाईगीरों में होती थी ,
आज तुम समाज सेवक हो गए हो ,
दरअसल यही तो बड़ी समस्या है ,
दूर कर पाओगे ,
मै निरुत्तर था ,
वह कहे जा रहा था ,
समाजसेवक सुने जा रहा था ,
विनोद भगत
काला धन ,
भारत एक सांस्कृतिक देश है ,
नेताजी बोल रहे थे ,
पत्रकार बोले ,नेताजी काला धन ,
देश की सबसे बड़ी समस्या है ,
आप क्या कहेंगे इस बारे में ,
नेताजी आग बबूला हो गए ,
पत्रकारों पर आँखें तरेरी ,
गुस्से से बोले ,
आप इस पावन देश की संस्कृति को प्रदूषित कर रहे हैं ,
इस वैदिक और सांस्कृतिक देश में धन लक्ष्मी जी होती हैं ,
और आप लक्ष्मीजी को काला कह रहे हो ,
इसीलिए धन (लक्ष्मीजी ) हमारे पास है ,
आप धन कमाने को पाप कहते हो ,
कैसे अधर्मी हो ,
धर्म का पालन करो , धन की पूजा करो ,
धन के लिए कुछ भी करो ,
तभी लक्ष्मीजी प्रसन्न होंगी ,
आईंदा काला धन कभी मत कहना ,
धन तो धन है ,
हम तो धन की यानी लक्ष्मीजी की इज्ज़त करते हैं ,
तभी तो बेहतर ज़िन्दगी जीते हैं ,
विनोद भगत
नेताजी बोल रहे थे ,
पत्रकार बोले ,नेताजी काला धन ,
देश की सबसे बड़ी समस्या है ,
आप क्या कहेंगे इस बारे में ,
नेताजी आग बबूला हो गए ,
पत्रकारों पर आँखें तरेरी ,
गुस्से से बोले ,
आप इस पावन देश की संस्कृति को प्रदूषित कर रहे हैं ,
इस वैदिक और सांस्कृतिक देश में धन लक्ष्मी जी होती हैं ,
और आप लक्ष्मीजी को काला कह रहे हो ,
इसीलिए धन (लक्ष्मीजी ) हमारे पास है ,
आप धन कमाने को पाप कहते हो ,
कैसे अधर्मी हो ,
धर्म का पालन करो , धन की पूजा करो ,
धन के लिए कुछ भी करो ,
तभी लक्ष्मीजी प्रसन्न होंगी ,
आईंदा काला धन कभी मत कहना ,
धन तो धन है ,
हम तो धन की यानी लक्ष्मीजी की इज्ज़त करते हैं ,
तभी तो बेहतर ज़िन्दगी जीते हैं ,
विनोद भगत
Saturday 20 April 2013
दरिंदों की सभा
बड़ा गंभीर विचार
दरिंदों की सभा में,
होने लगा था ,
सारे दरिन्दे चिंता में थे ,
अरे ये क्या हो रहा है ,
आदमी हमारी बराबरी पर है ,
हमारी जात पर भीषण ख़तरा है ,
आओ हम सब मिलकर एक हो जाए ,
आदमी को उसकी असली औकात बताएं ,
एक दरिन्दे को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजें ,
यह क्या आदमी के पास जाने के लिए
तैयार नहीं था कोई दरिंदा ,
सब डर रहे थे ,
आखिर कौन जाएगा आदमी के पास ,
सारे दरिन्दे इसी सोच में डूबे थे ,
दरिंदों के चेहरों पर आदमी का खौफ ,
साफ़ नज़र आ रहा था ,
आदमी जो दरिंदों से डरता था ,
आज उसी आदमी के नाम से ,
दरिंदों की हवा संट थी ,
दरिंदें , बहुत परेशान हैं ,
आदमी का क्या करें ,
विनोद भगत
—दरिंदों की सभा में,
होने लगा था ,
सारे दरिन्दे चिंता में थे ,
अरे ये क्या हो रहा है ,
आदमी हमारी बराबरी पर है ,
हमारी जात पर भीषण ख़तरा है ,
आओ हम सब मिलकर एक हो जाए ,
आदमी को उसकी असली औकात बताएं ,
एक दरिन्दे को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजें ,
यह क्या आदमी के पास जाने के लिए
तैयार नहीं था कोई दरिंदा ,
सब डर रहे थे ,
आखिर कौन जाएगा आदमी के पास ,
सारे दरिन्दे इसी सोच में डूबे थे ,
दरिंदों के चेहरों पर आदमी का खौफ ,
साफ़ नज़र आ रहा था ,
आदमी जो दरिंदों से डरता था ,
आज उसी आदमी के नाम से ,
दरिंदों की हवा संट थी ,
दरिंदें , बहुत परेशान हैं ,
आदमी का क्या करें ,
विनोद भगत
Thursday 4 April 2013
गीत लिखा है मैंने ,
दर्द की स्याही से गीत लिखा है मैंने ,
वेदना को अपना मीत लिखा है मैंने ,
बड़ी लम्बी हो गयी है व्यथा की कथा,
ह्रदय की करुणा का संगीत दिया है मैंने,
दर्द में भी अनोखा स्वाद आने लगा है मुझे ,
तुम क्या जानो पीड़ा को जीत लिया है मैंने ,
जो पूछते हो मुस्कराता हूँ क्यों हर दम मैं ,
हर हाल में जीवन जीना सीख लिया है मैंने
दर्द की स्याही से गीत लिखा है मैंने ,
वेदना को अपना मीत लिखा है मैंने ,
विनोद भगत
—वेदना को अपना मीत लिखा है मैंने ,
बड़ी लम्बी हो गयी है व्यथा की कथा,
ह्रदय की करुणा का संगीत दिया है मैंने,
दर्द में भी अनोखा स्वाद आने लगा है मुझे ,
तुम क्या जानो पीड़ा को जीत लिया है मैंने ,
जो पूछते हो मुस्कराता हूँ क्यों हर दम मैं ,
हर हाल में जीवन जीना सीख लिया है मैंने
दर्द की स्याही से गीत लिखा है मैंने ,
वेदना को अपना मीत लिखा है मैंने ,
विनोद भगत
Tuesday 2 April 2013
सूर्य अस्त ,पहाड़ मस्त ,
म्यर पहाडक ज्वानों
सुण लिया यक बात ,
शराब पिबेर नि करो
जवानी अपणी बरबाद ,
शराबक लिजी किलें बदनाम
करौन्छां अपणी भुमी ,
अब बदल दिया भागि ,
पहाडेक पहाडीक परिभाषा ,
सूर्य अस्त ,पहाड़ मस्त ,
कुनी वालोंक मूख बंद कर दिया अब ,
हाथ जोडबेर विनती छु हमरी ,
द्य्खें दिया अब सबुकें ,
बतें दिया अब सबुकें ,
जो यस कौल ,
वीक मुखम जलि लाकड़ लगे दिया ,
पर शराब अब पिन छोड़ दिया ज्वानो
विनोद भगत
सुण लिया यक बात ,
शराब पिबेर नि करो
जवानी अपणी बरबाद ,
शराबक लिजी किलें बदनाम
करौन्छां अपणी भुमी ,
अब बदल दिया भागि ,
पहाडेक पहाडीक परिभाषा ,
सूर्य अस्त ,पहाड़ मस्त ,
कुनी वालोंक मूख बंद कर दिया अब ,
हाथ जोडबेर विनती छु हमरी ,
द्य्खें दिया अब सबुकें ,
बतें दिया अब सबुकें ,
जो यस कौल ,
वीक मुखम जलि लाकड़ लगे दिया ,
पर शराब अब पिन छोड़ दिया ज्वानो
विनोद भगत
Thursday 21 March 2013
मी पहाड़ी छू ,
होई रें , मी पहाड़ी छू ,
पर पहाड़ी बुलान में म्य्कें शरम लागें ,
मी भौतें ठुल ह्वेग्यों नै ,
जब आदिम ठुल ह्वेजां ,
तब तली द्य्खन मुश्किल ह्वेजा,
ईज कें इजा नि कै सकन ,
अरे , लोग म्यर मज़ाक नि करल ,
अब त मी गिटपिट अंग्रेजी बुलानु ,
अब मी ठुल जो भै ,
अपनि भाषा और संस्कृति कै भुलें बेर ,
ठुल हुनक रिवाज़ चल ग्याँ आजकल
विनोद भगत
पर पहाड़ी बुलान में म्य्कें शरम लागें ,
मी भौतें ठुल ह्वेग्यों नै ,
जब आदिम ठुल ह्वेजां ,
तब तली द्य्खन मुश्किल ह्वेजा,
ईज कें इजा नि कै सकन ,
अरे , लोग म्यर मज़ाक नि करल ,
अब त मी गिटपिट अंग्रेजी बुलानु ,
अब मी ठुल जो भै ,
अपनि भाषा और संस्कृति कै भुलें बेर ,
ठुल हुनक रिवाज़ चल ग्याँ आजकल
विनोद भगत
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