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Friday 30 March 2012

अच्छा और अहम् का सम्बन्ध ,

जब तुम ,
बहुत अच्छे हो जाते हो ,
तब स्वयं को एक नाजुक
मोड़ पर खड़े पाते हो ,
सच तो यह है ,
बहुत अच्छा हो जाने से ,
तुम पर जिम्मेदारियों का बोझ ,
और बढ जाता है ,
क्योंकि बड़ा आसान है ,
अच्छा बन जाना ,
और उतना ही दुरूह है
अपने अच्छेपन को निभाना ,
बहुत अच्छा हो जाना ,
स्वयं को आदर्श बना लेना ,
शायद एक दिन तुम्हारे भीतर के अहम् ,
जागृत कर दे ,
हो सकता है अहम् सच्चा हो ,
पर अहम् तो अहम् होता है ,
जो एक क्षण में तुम्हारे ,
आदर्शो की पराकाष्टा ,
के दुर्ग को नेस्तनाबूद कर दे ,
और तब अच्छा होने के सुख की अपेक्षा ,
एक भीषण पीड़ा ,
तुम्हारे हिस्से आएगी ,
अच्छा होना और अहम् का सम्बन्ध ,
आग और फूस का है ,
फूस तो तभी तक सुरक्षित है ,
जब तक आग से दूर है ,
इसलिए अपने अच्छेपन में ,
अहम् को मिलाने का प्रयास ,
कितना घातक है .
 

                         विनोद भगत


Tuesday 20 March 2012

संबोधन के उदबोधन

संबोधनों के उदबोधनो को ,
समझ सका है क्या कोई ,
जीवन में बदले संबोधनों के साथ ,
पल पल बदलते जीवन के रहस्य ,
संबोधनों की भाषा को क्या पढ़ पाया कोई,
बदले संबोधन के साथ बढ़ता है जीवन ,
बेटा बेटी के संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
चाचा मामा , मौसी फूफा के नए संबोधनों के साथ ,
कब बदल गया औए समय आगे चला गया ,
नित नए संबोधन पुराने संबोधनों के साथ ,
आगे बढ़ता यह जीवन संबोधनों से थकता नहीं ,
स्मरण आते हैं पुराने सबोधन जो अब भी है ,
पर संबोधित करने वाले कहीं खो जाते हैं ,
नए संबोधनों का आकर्षण तो है ,
पर पुराने संबोधनों की तृष्णा मिटती नहीं कभी ,
संबोधन के मायाजाल में उलझा उलझा सा जीवन ,
सुलझाने की चेष्टा में और भी उलझा है ,
संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
संबोधन की यात्रा अनवरत चलती रहेगी ,
संबोधन के मायाजाल से शायद ही कभी ,
मुक्त हो पाए यह जीवन ,
संबोधन है ,
तभी यह जीवन है ,
यही है संबोधन की भाषा और उसका रहस्य

विनोद भगत

Sunday 18 March 2012

खामोश चाहत

मैं छूना चाहता हूँ ,
तुम्हें ,
कुछ इस तरह कि,
छूने का अहसास ,
भी होने पायें तुम्हें ,
क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का ,
मंदिर हो ,
मेरी चाहत का भूले से भी ,
अहसास ना करना ,
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .

विनोद भगत

Monday 27 February 2012

कितने स्वार्थी हुए

भटक रहा समाज ,
गिरते नैतिक मूल्य ,
हर मर्यादा टूटी ,
मानवता कर रही रुदन ,
पुरातन परम्पराओं ,
की जल रही हैं चिताएं ,
आधुनिकता का लबादा ओढे हर कोई ,
छल , दंभ , कपट का जीवन जीते हम ,
झूटे अहम् को स्वाभिमान का नाम दिया ,
कितने स्वार्थी हुए हम ,
तोड़कर मर्यादा के बंधन ,
झूठ के पर्वत पर उदित करा रहे ,
प्रगति का सूर्य ,
गीत राम के गाते ,
कर्म रावण के ,
कैसा विरोधा भासी हुआ जीवन

विनोद भगत
 

Sunday 26 February 2012

नीड़

प्रकृति का जीव ,
 सुन्दर उपहार  है नीड़ ,
नीड़ कवच है ,
जीवन  का ,
नीड़ प्रकृति की ,
सुन्दर कला कृति ,
जीवन का प्रथम,
 सत्य नीड़ ,
कहीं घौसला कहीं मकान ,
पर क्या नीड़ की उपयोगिता ,
 समझ पाया मानव ,
अपने ही हाथों से तोड़ता ,
अपने ही नीड़ को ,
नीड़ केवल तिनकों , ईट पत्थरों से ,
बने घर का ही नाम नहीं ,
नीड़ नाम है आशा का ,
नीड़ नाम है यथार्थ का ,
यथार्थ है नीड़ के प्रति निष्ठा का ,
आस्था  का ,
नीड़ जहाँ तुम निवास करते हो ,
उस सकल राष्ट्र  का ,
नाम है नीड़ ,
और तुम मात्र तिनका हो ,
इस नीड़ का ,
यही यथार्थ है ,
यथार्थ से मुख मोड़कर ,
नीड़ के तिनके तिनके ,
अलग अलग कर ,
ये क्या कर रहे हो ,
तनिक विस्मृति से बहार आओ ,
देखो पाँव भी तुम्हारा है ,
 और कुहाड़ी भी तुम्हारे हाथ में है ,
कोई और क्यों ,
अपने कर्म का , तुम ही फैसला करो ,
स्मरण इतना ही रहे ,
 नीड़ कवच है जीवन का

                           विनोद भगत

 

Wednesday 22 February 2012

कही अनकही मेरा एक छोटा सा प्रयास है , मैं सभी मित्रों से निवेदन करता हूँ कि मुझे मेरी कमियों से अवगत कराएं ताकि मैं इसमे सुधार कर सकूँ

Tuesday 21 February 2012

खुद सुधरो


आओ समाज को बदलें ,
आओ लोगो को बदलें ,
आओ सदाचार सिखाएं ,
आओ उपदेश दें ,
आओ सत्य का प्रचार करें ,
आओ दुनिया को नैतिकता का पथ दिखाएँ ,
आओ स्वामी बन कर प्रवचन दें ,
तभी आवाज आयी,
जाओ ...... पहले खुद को सुधार लो ,
तब यह सब करना ,
खुद सुधरोगे सब कुछ बदल जाएगा ,
जो चाहते हो वह सब मील जाएगा
                       विनोद भगत