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मैं नया नया इस शहर में आया था। पहली पोस्टिंग थी। बड़ी मुश्किल से एक कमरा मिला। उसमें भी कई प्रतिबंध नौ बजे बाद नहीं आओगे, लाइट फालतू नहीं जल...
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नमस्कार , मै समाजसेवक , आपकी सेवा के लिए सदा तत्पर , कहिये , आपकी क्या समस्या है , अरे हाँ आराम से , मेरे चमचमाते मार्बल के फर्श से बचन...
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ज़मीन नफ़रत की , और खाद मिलायी दंगों की , वोट की फसल पाने के लिए , हकीकत यही है सियासत में घुस आये नंगों की , सत्ता मिलते ही एकदम , ...
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पेट में उनके आग होती है , जिनके चूल्हे बुझे होते हैं , बुझे चूल्हे की आग पेट से , जब बाहर निकलती है , तब विकराल हो जाती है , चूल्हे...
Friday 30 March 2012
Tuesday 20 March 2012
संबोधन के उदबोधन
संबोधनों के उदबोधनो को ,
समझ सका है क्या कोई ,
जीवन में बदले संबोधनों के साथ ,
पल पल बदलते जीवन के रहस्य ,
संबोधनों की भाषा को क्या पढ़ पाया कोई,
बदले संबोधन के साथ बढ़ता है जीवन ,
बेटा बेटी के संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
चाचा मामा , मौसी फूफा के नए संबोधनों के साथ ,
कब बदल गया औए समय आगे चला गया ,
नित नए संबोधन पुराने संबोधनों के साथ ,
आगे बढ़ता यह जीवन संबोधनों से थकता नहीं ,
स्मरण आते हैं पुराने सबोधन जो अब भी है ,
पर संबोधित करने वाले कहीं खो जाते हैं ,
नए संबोधनों का आकर्षण तो है ,
पर पुराने संबोधनों की तृष्णा मिटती नहीं कभी ,
संबोधन के मायाजाल में उलझा उलझा सा जीवन ,
सुलझाने की चेष्टा में और भी उलझा है ,
संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
संबोधन की यात्रा अनवरत चलती रहेगी ,
संबोधन के मायाजाल से शायद ही कभी ,
मुक्त हो पाए यह जीवन ,
संबोधन है ,
तभी यह जीवन है ,
यही है संबोधन की भाषा और उसका रहस्य
विनोद भगत
समझ सका है क्या कोई ,
जीवन में बदले संबोधनों के साथ ,
पल पल बदलते जीवन के रहस्य ,
संबोधनों की भाषा को क्या पढ़ पाया कोई,
बदले संबोधन के साथ बढ़ता है जीवन ,
बेटा बेटी के संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
चाचा मामा , मौसी फूफा के नए संबोधनों के साथ ,
कब बदल गया औए समय आगे चला गया ,
नित नए संबोधन पुराने संबोधनों के साथ ,
आगे बढ़ता यह जीवन संबोधनों से थकता नहीं ,
स्मरण आते हैं पुराने सबोधन जो अब भी है ,
पर संबोधित करने वाले कहीं खो जाते हैं ,
नए संबोधनों का आकर्षण तो है ,
पर पुराने संबोधनों की तृष्णा मिटती नहीं कभी ,
संबोधन के मायाजाल में उलझा उलझा सा जीवन ,
सुलझाने की चेष्टा में और भी उलझा है ,
संबोधन के साथ प्रारम्भ हुआ जीवन ,
संबोधन की यात्रा अनवरत चलती रहेगी ,
संबोधन के मायाजाल से शायद ही कभी ,
मुक्त हो पाए यह जीवन ,
संबोधन है ,
तभी यह जीवन है ,
यही है संबोधन की भाषा और उसका रहस्य
विनोद भगत
Sunday 18 March 2012
खामोश चाहत
मैं छूना चाहता हूँ ,
तुम्हें ,
कुछ इस तरह कि,
छूने का अहसास ,
भी होने पायें तुम्हें ,
क्योंकि , तुम मेरी खामोश चाहत का ,
मंदिर हो ,
मेरी चाहत का भूले से भी ,
अहसास ना करना ,
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .
विनोद भगत
क्योंकि ये अहसास ,
तुम्हें चुभन और तड़पन देगा ,
और मैं तुम्हें तडपाना तो नहीं चाहता ,
मैं तो बस चाहते ही रहना ,
चाहता हूँ तुम्हें ,
तुम्हें अपनी चाहत का अहसास ,
दिलाये बिना ,
और मैंने अपनी इसी चाहत को ,
खामोश चाहत ,
का नाम दिया है .
विनोद भगत
Monday 27 February 2012
कितने स्वार्थी हुए
भटक रहा समाज ,
गिरते नैतिक मूल्य ,
हर मर्यादा टूटी ,
मानवता कर रही रुदन ,
पुरातन परम्पराओं ,
की जल रही हैं चिताएं ,
आधुनिकता का लबादा ओढे हर कोई ,
छल , दंभ , कपट का जीवन जीते हम ,
झूटे अहम् को स्वाभिमान का नाम दिया ,
कितने स्वार्थी हुए हम ,
तोड़कर मर्यादा के बंधन ,
झूठ के पर्वत पर उदित करा रहे ,
प्रगति का सूर्य ,
गीत राम के गाते ,
कर्म रावण के ,
कैसा विरोधा भासी हुआ जीवन
विनोद भगत
Sunday 26 February 2012
नीड़
प्रकृति का जीव ,
सुन्दर उपहार है नीड़ ,
नीड़ कवच है ,
जीवन का ,
नीड़ प्रकृति की ,
सुन्दर कला कृति ,
जीवन का प्रथम,
सत्य नीड़ ,
कहीं घौसला कहीं मकान ,
पर क्या नीड़ की उपयोगिता ,
समझ पाया मानव ,
अपने ही हाथों से तोड़ता ,
अपने ही नीड़ को ,
नीड़ केवल तिनकों , ईट पत्थरों से ,
बने घर का ही नाम नहीं ,
नीड़ नाम है आशा का ,
नीड़ नाम है यथार्थ का ,
यथार्थ है नीड़ के प्रति निष्ठा का ,
आस्था का ,
नीड़ जहाँ तुम निवास करते हो ,
उस सकल राष्ट्र का ,
नाम है नीड़ ,
और तुम मात्र तिनका हो ,
इस नीड़ का ,
यही यथार्थ है ,
यथार्थ से मुख मोड़कर ,
नीड़ के तिनके तिनके ,
अलग अलग कर ,
ये क्या कर रहे हो ,
तनिक विस्मृति से बहार आओ ,
देखो पाँव भी तुम्हारा है ,
और कुहाड़ी भी तुम्हारे हाथ में है ,
कोई और क्यों ,
अपने कर्म का , तुम ही फैसला करो ,
स्मरण इतना ही रहे ,
नीड़ कवच है जीवन का
विनोद भगत
सुन्दर उपहार है नीड़ ,
नीड़ कवच है ,
जीवन का ,
नीड़ प्रकृति की ,
सुन्दर कला कृति ,
जीवन का प्रथम,
सत्य नीड़ ,
कहीं घौसला कहीं मकान ,
पर क्या नीड़ की उपयोगिता ,
समझ पाया मानव ,
अपने ही हाथों से तोड़ता ,
अपने ही नीड़ को ,
नीड़ केवल तिनकों , ईट पत्थरों से ,
बने घर का ही नाम नहीं ,
नीड़ नाम है आशा का ,
नीड़ नाम है यथार्थ का ,
यथार्थ है नीड़ के प्रति निष्ठा का ,
आस्था का ,
नीड़ जहाँ तुम निवास करते हो ,
उस सकल राष्ट्र का ,
नाम है नीड़ ,
और तुम मात्र तिनका हो ,
इस नीड़ का ,
यही यथार्थ है ,
यथार्थ से मुख मोड़कर ,
नीड़ के तिनके तिनके ,
अलग अलग कर ,
ये क्या कर रहे हो ,
तनिक विस्मृति से बहार आओ ,
देखो पाँव भी तुम्हारा है ,
और कुहाड़ी भी तुम्हारे हाथ में है ,
कोई और क्यों ,
अपने कर्म का , तुम ही फैसला करो ,
स्मरण इतना ही रहे ,
नीड़ कवच है जीवन का
विनोद भगत
Wednesday 22 February 2012
Tuesday 21 February 2012
खुद सुधरो
आओ
समाज को बदलें ,
आओ
लोगो को बदलें ,
आओ
सदाचार सिखाएं ,
आओ
उपदेश दें ,
आओ
सत्य का प्रचार करें ,
आओ
दुनिया को नैतिकता का पथ दिखाएँ ,
आओ
स्वामी बन कर प्रवचन दें ,
तभी
आवाज आयी,
जाओ
...... पहले खुद को सुधार लो ,
तब
यह सब करना ,
खुद
सुधरोगे सब कुछ बदल जाएगा ,
जो
चाहते हो वह सब मील जाएगा
विनोद भगत
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