भर
आयी ये आँखे ,
जब
कहा उन्होंने , चलते हैं ,
यकबायक
ठहर गया ,
वक्त , जब कहा उन्होंने ,
चलते
हैं ,
रुंधे
गले से बस इतना ,
कह
पाए ,
जाओ
पर तुम अपनी ,
मधुर
स्म्रतियों को ,
हमारे
अन्तःस्थल से कैसे ,
ले
जा पाओगे ,
हाँ
स्मर्तिया , जिन पर ,
अब
तुम्हारा कोई ,
अधिकार
नहीं ,
वह
सब हमारी निधियां है ,
जिन्हें
संजोये रखेंगे ,
हम
अपने ह्रदय में ,
इसलिए
कि कभी वे तुम्हारी थी ,
जाओ
ले जाओ ,
हमारी
हृदयस्पर्शी भावनाएं ,
जिनमें
सिर्फ शुभकामनाओं ,
कि
विशाल आकांक्षाएं है ,
तुम्हारे
लिए .
विनोद
भगत