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Sunday 19 February 2012

मधुर स्मर्तिया


भर आयी ये आँखे ,
जब कहा उन्होंने , चलते हैं ,
यकबायक ठहर गया ,
वक्त , जब कहा उन्होंने ,
चलते हैं ,
रुंधे गले से बस इतना ,
कह पाए ,
जाओ पर तुम अपनी ,
मधुर स्म्रतियों को ,
हमारे अन्तःस्थल से कैसे ,
ले जा पाओगे ,
हाँ स्मर्तिया , जिन पर ,
अब तुम्हारा कोई ,
अधिकार नहीं ,
वह सब हमारी निधियां है ,
जिन्हें संजोये रखेंगे ,
हम अपने ह्रदय में ,
इसलिए कि कभी वे तुम्हारी थी ,
जाओ ले जाओ ,
हमारी हृदयस्पर्शी भावनाएं ,
जिनमें सिर्फ शुभकामनाओं ,
कि विशाल आकांक्षाएं है ,
तुम्हारे लिए .

विनोद भगत

Friday 17 February 2012

विकास हो रहा है ,


विकास हो रहा है ,
आज भी प्लेटफार्म पर कड़कती ठण्ड में ,
ठिठुरन भरी रात में फटे कम्बल में कोई सो रहा है ,
विकास हो रहा है ,
मैंने देखा एक रोटी के टुकड़े के लिए माँ की गोद में बच्चा ,
जार-जार रो रहा है ,
विकास हो रहा है ,
आज भी पेट की आग बुझाने को ,
पूरा शरीर बिक रहा है ,
विकास हो रहा है ,
पञ्च सितारा कक्षों में बैठकों में सड़क पर रहने वालो के भाग्य का ,
कोई फैसला हो रहा है ,
विकास हो रहा है ,
हाँ विकास हो रहा है ,
निरंतर इस बात का दावा हो रहा है ,
विकास हो गया तो उनके पास फिर काम ही क्या होगा ,
इसलिए विकास हो रहा है
                          विनोद भगत

मजबूर


मजबूर है प्रधानमंत्री ,
लाचार है आम आदमी ,
भ्रष्टाचार कर रहा अट्टहास ,
भारत की यह कैसी हुई तकदीर ,
अन्ना, रामदेव को भी साना ,
भ्रष्टाचार के दलदल में ,
अब कौन करेगा आम आदमी का दुःख दूर ,
जो भी आएगा आगे ,उसे भी देख िलया जायेगा ,
हम तो कीचड़ है , पत्थर मारने की कोइश्श कर के देख लो ,
हमारे भ्रष्टाचार की बात भूल जाओ ,
अपने दामन के छीटे साफ़ करने की सोचो ,
करें क्या मेरे प्यारे देशवासियों हम तो मजबूर है ,
हम तो मजबूर हैं ,
                  विनोद भगत

गुलामी


इन दिनों बहस
 जारी है ,
हम फिर गुलाम ,
होने जा रहे हैं ,
बहस का विषय ,
क्या यह नहीं हो ,
सकता कि,
हम अब कभी ,
गुलाम नहीं होंगे ,
पर अफ़सोस हम ,
असहाय हैं शायद ,
दो सौ वर्षों ,
कीगुलामी  हमारी ,
मानसिकता पर ,
आज भी हावी है ,
इसीलिए हम नहीं ,
सोच पाते,
 गुलामी के अलावा कुछ ,
संकीर्ण सोच के ,
दायरे में सिमटकर ,
हम अपने ही भाग्य के ,
विनाशक बन ,
बैठे हैं ,
गुलामी हमारा प्रारब्ध नहीं ,
गुलामी हमारा स्वभाव नहीं ,
गुलामी हमारी मानसिक
  सोच है सिर्फ   ,
सोच की दिशा भर ,
बदल दें हम ,
प्रश्न यह नहीं है ,
कि हम गुलाम होने जा ,
रहे हैं ,
बल्कि यह है कि ,
हम गुलाम ,
क्यों हो जाएँ ,
 सुनो,
 गुलामी से बचने को ,
अब हम हम सर नहीं ,
कटायेंगे ,
अब तैयार रहो सर ,
काटने को ,
बहस जारी रखो ,
पर अब , गुलाम होने कि प्रतीक्षा ,
हम नहीं करेंगे .

             विनोद भगत