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Sunday 6 January 2013

हम अब कुत्ते वाले हैं


मुझे आज भी याद है ,
मेरे गाँव के घर में एक गोठ होता था ,
गोठ में रोज़ सुबह जाना मुझे अच्छा लगता था ,
दादी के साथ गोठ में गोबर की महक ,
एक आनंद का अहसास कराती थी ,
दादी जब गायो को दुहती थी ,
बरतन में गिरते दूध की धर का संगीत मन्त्र मुग्ध करता था ,
फिर बरतन के झाग को देखकर मन आनंदित होता था ,
दूध के स्वाद का एक अलग ही नशा था ,
मेरे गाँव के कच्चे घर में चूल्हे पर उबलता था दूध ,
गाँव में जिस घर में गायें नहीं होती वहां दूध पहुचाना अच्छा लगता था ,
हमारे वहां गाये थी , गाँव में हमारा बड़ा मान था ,
आज गाँव नहीं , वो गोठ नहीं , गायें नहीं , कच्चा घर नहीं ,
शहर में एक मकान है , और बड़े बड़े कुत्ते हैं ,
इसलिए हमारा बड़ा मान है ,
सुबह शान से कुत्ते को घुमाते हैं ,
कई लोग हमें इर्ष्या से देखते हैं ,
हमारा दूध वाला भी हमें बाबूजी कहता है ,
दूध वाले के पास तो सिर्फ गाय है ,
हमारे पास बड़े बड़े कुत्ते हैं ,
हम अब कुत्ते वाले हैं ,
समझ में नहीं आता हम बड़े कब थे ,
जब गाय वाले थे ,
या अब, जब कुत्ते वाले हैं ,

विनोद भगत