ससुर
चारपाई पर सोया ,
खांसी
से बेदम पड़ा था ,
कब
से िच्ल्ला रहा था ,
बहू
एक कप चाय दे दे ,
बहू
गुस्से से भुनभुनाते बोली ,
बुड्डा
चैन से जीने नहीं देता ,
बहू
का कार्यकम तय था ,
स्वामी
जी का प्रवचन सुनने का ,
बहू
बड़ी सुशील थी, बड़ी धार्मिक थी
पांच
बजते ही पहुँच गयी ,
उस
पंडाल में जहाँ स्वामी जी प्रवचन कर रहे थे
स्वामी
जी बोल रहे थे , कानो में रस घोल रहे थे ,
बड़े
-बुजुर्गो की सेवा सच्ची प्राथर्ना है ,
बहू
बड़ी श्रधा से स्वामी जी का प्रवचन सुन रही थी
स्वामी
जी के प्रवचनों पर झूम रही थी ,
कीतनी
सुन्दर बाते बताते हैं स्वामी जी ,
स्वामी
जी को श्रधा से नमन कर बहू लौटी ,
घर
पर एक देह पड़ी थी , चारपाई पर ,
वही
देह हीली , बहू एक ग्लास पानी तो देना ,
हे
भगवन ,बूड़े े ने तो परेशां कर दीया ,
मरता
भी तो नहीं , स्वामी जी के वहां से कीतनी थकी हूँ ,
थकी
बहू पर जरा भी तो दया नहीं आती इस खूसट को ,
ऐसी
धार्मिक बहू भाग्य से ही मिलती है
विनोद भगत
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