तुम
मेरा आसमान हो ,
तुम
प्रश्रय देते हो ,
मेरे
लिए बादलों को ,
स्नेह
और स्निग्ध ममता ,
के
पवित्र जल से ,
सींचा
है तुमने मेरी ,
जीवन
वाटिका को ,
जग
ने तुम्हे केवल पिता कहा है ,
पर
मेरे लिए तो ,
तुम
अतुलनीय बल हो ,
तुमसे
ही तो मुझे जिजीविषा का ,
बिन
माँगा वरदान मिला ,
तुम
संबल हो मेरा ,
मेरी
कही अनकही,
आकांक्षाओं
की पूर्ति के सर्जक ,
तुम्हें
ही दे दूंगा यह प्राण , जो तुमने ही तो दिए है मुझे
,
प्रतिकार
की आकांक्षा में तो ,
नहीं
दिया होगा यह शरीर,
पर
मेरे हृदय के भीतर ,
छुपी
तुम्हारी पूजा ने ,
भर
दी अगाध भक्ति तुम्हारे प्रति
विनोद भगत
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