धरती
को बाँट दिया हमने ,
आओ
सूरज का भी बँटवारा कर लें ,
क्या
कहा बश में नहीं ,
हाँ , सही कहा ,
वश
में होता तो सूरज को भी बाँट लेते ,
अपना
अपना सूरज लेकर ,
गर्व
से इठलाते ,
यह
अलग बात है ,
अपने
सूरज से जलकर ख़ाक भले ही हो जाते ,
पर
सूरज को बांटते जरुर ,
जब
धरती को बाँट कर ,
हम
अपने ही लिए खोद रहे खाईयां ,
खुद
ही उन खाईयों में गिरकर नेस्तनाबूद होते हुए भी ,
नहीं
समझ रहे कि सही क्या है ,
गलत
क्या है ,
पहचान
हमारी मानव के रूप में थी ,
पर
खुद को नहीं पहचान पा रहे हम ,
कहानियाँ
सुनाई जाएँगी ,
इसी
बँटी हुई धरती पर ,
सदियों
पहले मानव होता था ,
अब
मानव सरीखे तो दिखते हैं ,
पर
मानवता दफ़न हो चुकी है ,
स्वार्थ ,लोलुपता , झूठे अहंकार के ,
राक्षस
ने मानवता का भक्षण कर लिया ,
हाँ
अब मानवता किताबों कि बात बन गयी है ,
विनोद भगत
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