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Friday 17 February 2012

गुलामी


इन दिनों बहस
 जारी है ,
हम फिर गुलाम ,
होने जा रहे हैं ,
बहस का विषय ,
क्या यह नहीं हो ,
सकता कि,
हम अब कभी ,
गुलाम नहीं होंगे ,
पर अफ़सोस हम ,
असहाय हैं शायद ,
दो सौ वर्षों ,
कीगुलामी  हमारी ,
मानसिकता पर ,
आज भी हावी है ,
इसीलिए हम नहीं ,
सोच पाते,
 गुलामी के अलावा कुछ ,
संकीर्ण सोच के ,
दायरे में सिमटकर ,
हम अपने ही भाग्य के ,
विनाशक बन ,
बैठे हैं ,
गुलामी हमारा प्रारब्ध नहीं ,
गुलामी हमारा स्वभाव नहीं ,
गुलामी हमारी मानसिक
  सोच है सिर्फ   ,
सोच की दिशा भर ,
बदल दें हम ,
प्रश्न यह नहीं है ,
कि हम गुलाम होने जा ,
रहे हैं ,
बल्कि यह है कि ,
हम गुलाम ,
क्यों हो जाएँ ,
 सुनो,
 गुलामी से बचने को ,
अब हम हम सर नहीं ,
कटायेंगे ,
अब तैयार रहो सर ,
काटने को ,
बहस जारी रखो ,
पर अब , गुलाम होने कि प्रतीक्षा ,
हम नहीं करेंगे .

             विनोद भगत

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