मुन्नी
बदनाम
शर्म
के परदे अब .
उतार
फेके हैं हमने ,
प्रगित
के नाम पर,
मर्यादा
के बंधन तोड़े ,
कैसा
बेशर्मी का नंगा खेल है यह ,
मुन्नी' के बदनाम होने पर ,
ख़ुशी
से नाचते, संगीत की स्वर लहिर्यो का ,
कैसा
है यह अपमान ,
"मुन्नी
जीसे पूजते थे , आज उसे बदनाम कर ,
गर्व
से झूम रहे हम ,
"मुन्नी
जो माँ है बहन हैं , बेटी है ,
उसकी
बदनामी का ढोल बजा बजा कर नाच रहे हम ,
हम
जो सीता , मीरा , सावित्री के आदर्शो पर इतराते
है ,
वही
मुन्नी की बदनामी पर आदर्शो की होली जला रहे हम ,
मुन्नी
के बदनाम होने पर ,
ख़ुशी
से नाचना ,
तर्कसंगत है या शास्त्रसम्मत ,
फुरसत कीसे है सोचने की ,
अभी
तो नाच रहे है ख़ुशी से
आखीर
मुन्नी बदनाम हुई है
विनोद भगत
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