जीवन
के झंझावातों में ,
पीड़ा
भरी रातों में ,
हृदय
की गहराईयों में ,
तुम
ही तुम थे ,
हाँ
यह तुम ही तो थे ,
जिसके
निश्छल प्रेम ने ,
दिया
मुझे जीने का संबल ,
प्रिये, तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श ने ,
मेरे
दर्द को भी स्वादमय बना दिया ,
में
कैसे कहूँ की तुम मेरे तम भरे जीवन में ,
शीतल
चादनी की मानिंद आये ,
विनोद भगत
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