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Friday 17 February 2012

दरकते पहाड़


पहाड़ अब भी है क्या ,
मैंने सुना था पहाड़ दरक गए है ,
दरकते पहाड़ों के बीच चीख रही है ,
प्रक्रति जिसे कोई नहीं सुन रहा है ,
पहाड़ की भी क्या नियति है ,
पहाड़ जैसा दुःख झेलते यह पहाड़ ,
दरकते जा रहे है ,
बांधों के नाम पर जो दरका रहे है पहाड़ ,
कोई उन्हें रोको ,
पर स्मरण रहे ,
रोकने वाला प्रगति की राह में बाधक साबित कर दिया जाएगा ,
पर फिर भी रोकना ही पडेगा ,
सच में हम कितने कृतघ्न हो गए है ,
जो जीवन देते है ,
उन्हें ही मौत दे रहे है ,
जिस शाख पर बैठे है ,
 उसे ही काट रहे है ,
खुद सोचे हम क्या है

              विनोद भगत

1 comment:

  1. उम्दा भाव ....पहाड़ों की कोई सुनता ही नहीं है ..........
    पहाड़ अब भी है क्या ,
    मैंने सुना था पहाड़ दरक गए है ,
    दरकते पहाड़ों के बीच चीख रही है ,
    प्रक्रति जिसे कोई नहीं सुन रहा है ,
    पहाड़ की भी क्या नियति है ,
    पहाड़ जैसा दुःख झेलते यह पहाड़ ,
    दरकते जा रहे है ,

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