पहाड़
अब भी है क्या ,
मैंने
सुना था पहाड़ दरक गए है ,
दरकते
पहाड़ों के बीच चीख रही है ,
प्रक्रति
जिसे कोई नहीं सुन रहा है ,
पहाड़
की भी क्या नियति है ,
पहाड़
जैसा दुःख झेलते यह पहाड़ ,
दरकते
जा रहे है ,
बांधों
के नाम पर जो दरका रहे है पहाड़ ,
कोई
उन्हें रोको ,
पर
स्मरण रहे ,
रोकने
वाला प्रगति की राह में बाधक साबित कर दिया जाएगा ,
पर
फिर भी रोकना ही पडेगा ,
सच
में हम कितने कृतघ्न हो गए है ,
जो
जीवन देते है ,
उन्हें
ही मौत दे रहे है ,
जिस
शाख पर बैठे है ,
उसे ही काट रहे है ,
खुद
सोचे हम क्या है
विनोद भगत
उम्दा भाव ....पहाड़ों की कोई सुनता ही नहीं है ..........
ReplyDeleteपहाड़ अब भी है क्या ,
मैंने सुना था पहाड़ दरक गए है ,
दरकते पहाड़ों के बीच चीख रही है ,
प्रक्रति जिसे कोई नहीं सुन रहा है ,
पहाड़ की भी क्या नियति है ,
पहाड़ जैसा दुःख झेलते यह पहाड़ ,
दरकते जा रहे है ,