मैं
क्यों लिखता हूँ ,
सच
तो यह है ,
कि
मैं खुद भी नहीं जानता ,
विचारों को शब्दों में ढाल कर ,
कुछ
कहने की कोशिश करता हूँ ,
मैं
कुछ नया नहीं गढ़ता ,
वही
जो पहले भी सुना औए लिखा होता है ,
वही
सब स्मरण कराता हूँ ,
मैं
नहीं जानता मेरे लिखने से क्या होगा ,
पहले
भी बहुत कुछ लिखा गया है ,
उसका
क्या कोई सार्थक परिणाम हुआ ,
शायद
नहीं ,
लोग
पढ़ते रहे ,
कुछ
तारीफ़ के पुल गढ़ते रहे ,
जीवन
में कौन उतार पाया ,
अच्छी
बाते पढने में अच्छी लगती है ,
अमल
कब हो पता है ,
शायद
इसीलिए मैं सोचता हूँ ,
मैं
क्या और क्यों लिखता हूँ ,
पर
लिखना मेरा कर्म है ,
फल
की इच्छा ना करूँ ,
तो
लिखना जारी रहेगा ,
विनोद भगत
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