एक
दिन ,
मुझे
लगने लगा ,
अरे मैं सम्मान के योग्य हो गया हूँ ,
अब
हर किसी को मेरा ,
अभिनन्दन
करना चाहिए ,
सब
मेरा सम्मान करें ,
पर
यह क्या ,
जिस
दिन से मैंने ,
यह
सोचा ,
ठीक
उसी दिन से ,
मुझे
ऐसा भी लगा ,
लोग
मेरा ,
अपमान
कर रहे हैं ,
क्यों ,
यह
क्या हुआ , मुझ जैसे ,
सम्मानित
का अपमान क्यों ,
मैं
उसी दिन से खिन्न रहने लगा ,
हैरान
परेशान होने लगा ,
अपने
अपमान का कारण ढूढने ,
में
लग गया ,
कि
अचानक एक दिन मुझे कारण भी पता चल गया ,
मेरे
ही अंतर्मन से एक आवाज़ आयी ,
तुम
खुद को सम्मानित समझ रहे हो ,
दूसरों
को क्या समझते हो ,
अपने
सम्मान कि याद तुम्हें है ,
जरा
सोचो एक पल के लिए ,
सम्मान
से देखो दूसरों को भी ,
सम्मान
दो दूसरों को भी ,
मैंने
मन कि बात सुनी और मानी ,
अब
मैं सुकून से हूँ ,
दूसरों
को सम्मान देता हूँ ,
तब
से मुझे भी सम्मान मिलने लगा ,
सही मायनों में अब ,
सम्मानित
व्यक्ति हूँ ,
मैं सबका सम्मान करता हूँ ,
और
खुद भी सम्मानित हो रहा हूँ ,
दोस्तों
अब मैं वास्तव में ,
सम्मानित
व्यक्ति हूँ( विनोद भगत )
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