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पेट में उनके आग होती है , जिनके चूल्हे बुझे होते हैं , बुझे चूल्हे की आग पेट से , जब बाहर निकलती है , तब विकराल हो जाती है , चूल्हे...
Monday 27 February 2012
Sunday 26 February 2012
नीड़
प्रकृति का जीव ,
सुन्दर उपहार है नीड़ ,
नीड़ कवच है ,
जीवन का ,
नीड़ प्रकृति की ,
सुन्दर कला कृति ,
जीवन का प्रथम,
सत्य नीड़ ,
कहीं घौसला कहीं मकान ,
पर क्या नीड़ की उपयोगिता ,
समझ पाया मानव ,
अपने ही हाथों से तोड़ता ,
अपने ही नीड़ को ,
नीड़ केवल तिनकों , ईट पत्थरों से ,
बने घर का ही नाम नहीं ,
नीड़ नाम है आशा का ,
नीड़ नाम है यथार्थ का ,
यथार्थ है नीड़ के प्रति निष्ठा का ,
आस्था का ,
नीड़ जहाँ तुम निवास करते हो ,
उस सकल राष्ट्र का ,
नाम है नीड़ ,
और तुम मात्र तिनका हो ,
इस नीड़ का ,
यही यथार्थ है ,
यथार्थ से मुख मोड़कर ,
नीड़ के तिनके तिनके ,
अलग अलग कर ,
ये क्या कर रहे हो ,
तनिक विस्मृति से बहार आओ ,
देखो पाँव भी तुम्हारा है ,
और कुहाड़ी भी तुम्हारे हाथ में है ,
कोई और क्यों ,
अपने कर्म का , तुम ही फैसला करो ,
स्मरण इतना ही रहे ,
नीड़ कवच है जीवन का
विनोद भगत
सुन्दर उपहार है नीड़ ,
नीड़ कवच है ,
जीवन का ,
नीड़ प्रकृति की ,
सुन्दर कला कृति ,
जीवन का प्रथम,
सत्य नीड़ ,
कहीं घौसला कहीं मकान ,
पर क्या नीड़ की उपयोगिता ,
समझ पाया मानव ,
अपने ही हाथों से तोड़ता ,
अपने ही नीड़ को ,
नीड़ केवल तिनकों , ईट पत्थरों से ,
बने घर का ही नाम नहीं ,
नीड़ नाम है आशा का ,
नीड़ नाम है यथार्थ का ,
यथार्थ है नीड़ के प्रति निष्ठा का ,
आस्था का ,
नीड़ जहाँ तुम निवास करते हो ,
उस सकल राष्ट्र का ,
नाम है नीड़ ,
और तुम मात्र तिनका हो ,
इस नीड़ का ,
यही यथार्थ है ,
यथार्थ से मुख मोड़कर ,
नीड़ के तिनके तिनके ,
अलग अलग कर ,
ये क्या कर रहे हो ,
तनिक विस्मृति से बहार आओ ,
देखो पाँव भी तुम्हारा है ,
और कुहाड़ी भी तुम्हारे हाथ में है ,
कोई और क्यों ,
अपने कर्म का , तुम ही फैसला करो ,
स्मरण इतना ही रहे ,
नीड़ कवच है जीवन का
विनोद भगत
Wednesday 22 February 2012
Tuesday 21 February 2012
खुद सुधरो
आओ
समाज को बदलें ,
आओ
लोगो को बदलें ,
आओ
सदाचार सिखाएं ,
आओ
उपदेश दें ,
आओ
सत्य का प्रचार करें ,
आओ
दुनिया को नैतिकता का पथ दिखाएँ ,
आओ
स्वामी बन कर प्रवचन दें ,
तभी
आवाज आयी,
जाओ
...... पहले खुद को सुधार लो ,
तब
यह सब करना ,
खुद
सुधरोगे सब कुछ बदल जाएगा ,
जो
चाहते हो वह सब मील जाएगा
विनोद भगत
मैं क्यों लिखता हूँ ,
मैं
क्यों लिखता हूँ ,
सच
तो यह है ,
कि
मैं खुद भी नहीं जानता ,
विचारों को शब्दों में ढाल कर ,
कुछ
कहने की कोशिश करता हूँ ,
मैं
कुछ नया नहीं गढ़ता ,
वही
जो पहले भी सुना औए लिखा होता है ,
वही
सब स्मरण कराता हूँ ,
मैं
नहीं जानता मेरे लिखने से क्या होगा ,
पहले
भी बहुत कुछ लिखा गया है ,
उसका
क्या कोई सार्थक परिणाम हुआ ,
शायद
नहीं ,
लोग
पढ़ते रहे ,
कुछ
तारीफ़ के पुल गढ़ते रहे ,
जीवन
में कौन उतार पाया ,
अच्छी
बाते पढने में अच्छी लगती है ,
अमल
कब हो पता है ,
शायद
इसीलिए मैं सोचता हूँ ,
मैं
क्या और क्यों लिखता हूँ ,
पर
लिखना मेरा कर्म है ,
फल
की इच्छा ना करूँ ,
तो
लिखना जारी रहेगा ,
विनोद भगत
Monday 20 February 2012
आम आदमी
आम
आदमी मुझसे िब्गड़ गया ,
बुरा
भला कहने लगा ,
गुस्से
में मुझे घूरने लगा ,
लाल
पीली ऑंखें िदखाता ,
बोला
गाली मत देना ,
आज
तो कह िदया ,
आगे
से कभी मुझे ,
नेताजी
मत कहना ,
जो
मेरी कमाई खाता है ,
उसे
मेरे बराबर मत बनाना
विनोदभगत
Sunday 19 February 2012
मधुर स्मर्तिया
भर
आयी ये आँखे ,
जब
कहा उन्होंने , चलते हैं ,
यकबायक
ठहर गया ,
वक्त , जब कहा उन्होंने ,
चलते
हैं ,
रुंधे
गले से बस इतना ,
कह
पाए ,
जाओ
पर तुम अपनी ,
मधुर
स्म्रतियों को ,
हमारे
अन्तःस्थल से कैसे ,
ले
जा पाओगे ,
हाँ
स्मर्तिया , जिन पर ,
अब
तुम्हारा कोई ,
अधिकार
नहीं ,
वह
सब हमारी निधियां है ,
जिन्हें
संजोये रखेंगे ,
हम
अपने ह्रदय में ,
इसलिए
कि कभी वे तुम्हारी थी ,
जाओ
ले जाओ ,
हमारी
हृदयस्पर्शी भावनाएं ,
जिनमें
सिर्फ शुभकामनाओं ,
कि
विशाल आकांक्षाएं है ,
तुम्हारे
लिए .
विनोद
भगत
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